सच्चा चेला

सुन्दरपुर म एक झन बहुत बढ़िया साधु रहय। जेन हर रोज भगवान भक्ति म लीन रहय।

येकर कुटिया म बहुत झन चेला रहय जेन मन अपन गुरुजी के बताय मार्ग, रस्ता म रेंगय। इही म एक झन किरपाल नाम के चेला रहीस। तेन हर अपन गुरुजी के संझा बिहनिया पांव परय अउ हर कहना ल मानय। एक दिन गुरुजी हर अपन सब चेला ल उंकर-उंकर लईक काम बताईस। सब चेला अपन-अपन काम म चल दीन। बाच गीस किरपाल हर तेन ल गुरुजी हर कइथे- बेटा किरपाल तैं आज सुख्खा-सुख्खा लकड़ी लाय बर नंदिया के ओ पार जा आज कुटिया म सब सुख्खा लकड़ी हर सिरागे हे। गुरुजी के बात ल सुन के किरपाल हव गुरुजी कइथे। हां, अउ सुन किरपाल ढीलिंग-ढीलिंग म मत चढ़बे गिर जाबे अउ लकड़ी ल धर के संझकेरहे आबे तोर आय बिना इंहा चुल्हा नई जरय। गुरुजी के कहना ल मान के किरपाल हर सुख्खा लकड़ी लाय बर कुटी ल छोड़के चल दीस। किरपाल जंगल भीतर पहुंच जाथे अउ सुख्खा-सुख्खा लकड़ी ल टोर के बांधे बर लागिस। तेतके बेरा हवा गरेर संग पानी आय बर धर लिस। देखते देखत म पूरा जंगल हर मूसलाधार पानी गिरई म सादा-सादा होगे किरपाल हर ठंड म कापे बर धर लिस। धांये येती जावय धांय ओती जावय। कोनो मेरा लुकाय के जगा नई रहिस। येती गुरुजी हर पानी के गिरई ल देखके चिंता करे बर धर लिस का होही कती मेरा लुकाय होही किरपाल हर। पानी गिरे ल थोर-थोर कम होय बर धरलिस। थोरकिन के बाद पानी गिरई पूरा बंद होगे। किरपाल हर अपन सब कपड़ा ल निचोइस अउ फेर पहीन लिस काबर गुरुजी के आज्ञा ल माने बर रहीस। फेर अब्बड़ बेरा होगे रहीस किरपाल के नंदिया तीर के आत ले नंदिया हर बाढ़ गे रहीस। कोनो ये पार ले ओ पार नई नाहके सकतीस। किरपाल हर उनीस न गुनीस अपन लकड़ी के डेरी ल पानी तीर म उतार के कस के अउ बांध दीस। तांहले ओकरे ऊपर चढ़ के एक ठन छोटकन डंडा म डोंगा कस खोय बर धर लीस जइसने ओहा बीच धार म पहुंचीस एक ठन जबड़ भवारी म ओकर लकड़ी के ढेरी हर फंस जाथे। भंवारी हर लकड़ी ल पानी के भीतर म घुमात-घुमात ले जाथे किरपाल हर तऊर के ओ मेरा ले अन्ते आ जथे तऊरत-तऊरत बिचारा किरपाल थक जाथे अउ नंदिया ऊपर म सुत जाथे। येती गुरुजी हर अपन सब चेला मन ल किरपाल ल खोजे बर भेज दीस। नंदिया के तीर-तीर सब चेला मन खोजत-खोजत आत रहीस तेन मेरा एक झन सियनहा बबा बारी राखत बइठे रहीस। सब चेला बबा मेरा जाके कइथे बबा एको झन लइका देखे हच का लकड़ी धरे होही ओहर। बबा ओमन ल बताथें- बेटा हो खाल्हे म एक झन डोंगहार हर लकर-लकर डोंगा ल बीच धार म लेगिस अउ काय-काय अपन डोंगा म चढ़ाइस त तुमन खाल्हे डोंगा घाट म जावव अउ देखव ओहा काय धरिस हावय। सब चेला लकर-लकर खाल्हे म डोंगाघाट हावय तेन मेरा गिस अउ देखथे किरपाल हर बेहोस पडे रिहीस। सांस हर चलत रहीस एक झन चेला हर अपन गुरुजी ल बलाय बर गीस। गुरुजी के आत ले किरपाल के चेत आत रहीस थोक-थोक। गुरुजी हर आके किरपाल ल देखथे अउ कइथे किरपाल… किरपाल उठ बेटा। किरपाल गुरुजी के गोठ ल सुनके उठ जाथे अउ रोय बर धरलीस अउ गुरुजी ल रोवत-रोवत कइथे- गुरुजी आज मैं तोर बात ल पूरा नई कर सकेंव। मोर सेती आज तुमन ल भूखे पेट सुते बर लागही तेकर ले मैं मर जातेंव तभे ठीक रहीस। गुरुजी हर किरपाल के पीठ ल थपथपात कहिथे-बेटा तैं आज मोर बात ल पूरा कर देस। तैं हमर मन के भूख मिटाय खातिर अपन जान ल दे दे रेहेस। तैं तोर गुरुजी के सच्चा चेला आस। आज मोर मान ल रख देस अइसे। कइके गुरूजी हर किरपाल अउ अपन सब चेला ल धर के अपन कुटी में आ जाथे। गुरुजी हर रात कर किरपाल ल कइथे बेटा किरपाल भगवान सत के संग रइथे। आज भगवान तोर संग रहीस अइसने कइके सुत जाथे।


श्यामू विश्वकर्मा
नयापारा, डमरू

Related posts